महा शिव रात्रि के उत्सव पर शिव चालीसा का पाठ किया जाता है। शिव चालीसा का पाठ करने घर में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है । भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए शिव चालीसा का पाठ करना जरूरी है । शिव चालीसा को आप सुबह शाम कभी भी पढ़ सकते हो ।


Shiv Chalisa Pdf In Hindi



शिव चालीसा पढ़ने के फायदे


1
: जो भक्त सच्चे दिल से शिव चालीसा का पाठ करता है उसकी हर परिस्थिति में जीत होती है ।

2: शिव चालीसा का नियमित रूप से पाठ करने से भक्त के दिल में आत्मविश्वास बढ़ता है ।


शिव चालीसा को किसने लिखा


महर्षि वेद व्यास जी के द्वारा शिव चालीसा को लिखा गया था ।


Shiv Chalisa Pdf In Hindi


दोहा ॥

श्री गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान।

कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान।


॥ चौपाई ॥

जय गिरिजा पति दीन दयाला।

सदा करत सन्तन प्रतिपाला।

भाल चन्द्रमा सोहत नीके।

कानन कुण्डल नागफनी के।


अंग गौर शिर गंग बहाये।

मुण्डमाल तन छार लगाये।

वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे।

छवि को देख नाग मुनि मोहे।


मैना मातु की ह्वै दुलारी।

बाम अंग सोहत छवि न्यारी।

कर त्रिशूल सोहत छवि भारी।

करत सदा शत्रुन क्षयकारी।


नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे।

सागर मध्य कमल हैं जैसे।

कार्तिक श्याम और गणराऊ।

या छवि को कहि जात न काऊ।


देवन जबहीं जाय पुकारा।

 तब ही दुख प्रभु आप निवारा।

किया उपद्रव तारक भारी।

देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी।


तुरत षडानन आप पठायउ।

लवनिमेष महँ मारि गिरायउ।

आप जलंधर असुर संहारा।

सुयश तुम्हार विदित संसारा।


त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई।

सबहिं कृपा कर लीन बचाई।

किया तपहिं भागीरथ भारी।

पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी।


दानिन महं तुम सम कोउ नाहीं।

सेवक स्तुति करत सदाहीं।

वेद नाम महिमा तव गाई।

अकथ अनादि भेद नहिं पाई।


प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला।

जरे सुरासुर भये विहाला।

कीन्ही दया तहं करी सहाई।

नीलकण्ठ तब नाम कहाई।


पूजन रामचन्द्र जब कीन्हा।

जीत के लंक विभीषण दीन्हा।

सहस् कमल में हो रहे धारी।

एक कमल प्रभु राखेउ जोई।


कमल नयन पूजन चहं सोई।

कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर।

 भए प्रसन्न दिए इच्छित वर।

जय जय जय अनन्त अविनाशी।


करत कृपा सब के घटवासी।

दुष्ट सकल नित मोहि सतावै।

भ्रमत रहौं मोहि चैन न आवै।

त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो।


येहि अवसर मोहि आन उबारो।

लै त्रिशूल शत्रुन को मारो।

संकट ते मोहि आन उबारो।

मात-पिता भ्राता सब होई।


संकट में पूछत नहिं कोई।

स्वामी एक है आस तुम्हारी।

आय हरहु मम संकट भारी।

धन निर्धन को देत सदा हीं।


जो कोई जांचे सो फल पाहीं।

अस्तुति केहि विधि करैं तुम्हारी।

क्षमहु नाथ अब चूक हमारी।


॥ दोहा ॥

नित्त नेम कर प्रातः ही,

पाठ करौं चालीसा।

तुम मेरी मनोकामना,

पूर्ण करो जगदीश॥


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